गुरुवर व्रत विधि – जानिए कब और कैसे शुरू करें गुरुवार व्रत, क्या हैं इसके फायदे
गुरुवार व्रत विधि और नियम
सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. गुरुवार यानी बृहस्पतिवार (Thusrday) का दिन बृहस्पति देव और भगवान विष्णु को समर्पित हैं. इस दिन श्री हरि विष्णुजी, बृहस्पति देव और केले के पेड़ की भी पूजा की जाती है. बृहस्पतिदेव को बुद्धि का कारक माना जाता है। केले के पेड़ को हिन्दू धर्मानुसार बेहद पवित्र माना जाता है. इस दिन पुरुष एवं स्त्री दोनों ही व्रत कर सकते हैं. कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है और कभी पैसों की कमी नहीं होती. वहीं अगर कुवारी लड़कियां इस व्रत को रखें तो उनके विवाह में आ रही अड़चने दूर हो जाती हैं. इस दिन व्रत रखने से बृहस्पतिवार आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. अगर आप भी बृहस्पतिवार का व्रत करना चाहते हैं तो इस लेख में हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं. इस लेख में पढ़िए आपको कितने गुरुवार व्रत करने चाहिए? कब से व्रत शुरू करना चाहिए, गुरुवार व्रत की पूजा विधि, गुरुवार व्रत कथा-आरती एवं गुरुवार व्रत की उद्यापन विधि सहित तमाम जानकारी
कब से शुरू करें गुरुवार व्रत?
पूष या पौष के महीने यानी दिसम्बर या जनवरी को छोड़कर आप कभी भी ये व्रत शुरू कर सकते हैं. आप इस व्रत को किसी भी माह के शुक्लपक्ष के पहले गुरुवार से शुरू कर सकते हैं।
कितने गुरुवार रखें व्रत?
7 या 16 गुरुवार तक लगातार व्रत करने चाहिए और 8 वें या 17वें गुरुवार को उद्यापन करना चाहिए। पुरुष लगातार 16 गुरुवार का व्रत रख सकते हैं, लेकिन महिलाओं या लड़कियों को यह व्रत तभी करना चाहिए जब वो पूजा कर सकती हैं, मासिक धर्म के दौरान व्रत न करें।
बृहस्पतिवार व्रत किसे रखना चाहिए
जिनकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो |
विवाह में देरी और रुकावट आ रही हो, वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं चल रहा हो |
संतान संबंधी समस्या या संतान सुख से वंचित हो |
जिन्हें पेट या मोटापे से संबंधित समस्या हो |
जिन्हें अपना आध्यात्मिक पक्ष मजबूत करना हो और बुद्धि और शक्ति की कामना हो |
गुरुवार व्रत शुरू करने से पहले संकल्प लें
अगर आप गुरुवार व्रत/ बृहस्पतिवार व्रत रख रहें हें तो सबसे पहले व्रत रखने का संकल्प लें. इसके लिए व्रत के पहले दिन स्नान आदि कार्यों से निवृत्त हो जाएं और भगवान हरि या फिर केले के पेड़ के समक्ष बैठ जाएं। अब अपने हाथ में चावल एवं पीले फूल लेकर कहे- हे देवता मैं 7 या 16 गुरुवार व्रत करने का संकल्प ले रही हूं. मेरा ये व्रत स्वीकार करें. इसके बाद चावल और फूल भगवान को चढ़ा दें और भगवान को छोटा पीला वस्त्र अर्पण कर अपने व्रत का आरंभ करें |
बृहस्पतिवार व्रत पूजा विधि
सुबह उठकर नहाने के बाद पीला वस्त्र पहनें. केले के पेड़ के पास बैठ कर भगवान बृहस्पति की तस्वीर रखकर पूजा करें. बृहस्पति देव की तस्वीर न हो तो केवल केले के पेड़ की भी पूजा कर सकते हैं. जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ को स्नान कराएं. अब उस लोटे में पीला फूल, गुड़ और चने की दाल डालकर भगवान को चढ़ाएं. हल्दी या चंदन से भगवान और केले के पेड़ का तिलक करें और भगवान के समक्ष दीपक जलाएं. इसके बाद पीली वस्तुएं जैसे पीले फूल, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल आदि का भोग लगाकर पूजन करें. पूजन के बाद भगवान बृहस्पति देव की कथा जरूर सुनें. कथा के बाद आरती कर लीजिये और अंत में क्षमा प्रार्थना करिए. ध्यान रखें इस दिन आप केले के पेड़ की पूजा करते हैं इसलिए केले का सेवन भूल से भी न करें. आप केले को केवल पूजा में चढ़ा सकते हैं और प्रसाद में बांट सकते हैं. इस दिन गाय को चने की दाल और गुड़ खिलाना शुभ होता है |
गुरुवार के दिन करें इस मंत्र का जाप
गुरुवार के दिन 5, 7 या 11 बार “ॐ गुं गुरुवे नमः ” मन्त्र का जाप प्रसन्न मन से करें |
गुरुवार व्रत में क्या खाना चाहिए
गुरुवार व्रत के दौरान दिन में एक समय ही भोजन करें. नमक और खट्टे का सेवन न करें. खाने में चने की दाल या पीली चीजें खाएं. आप चने की दाल की पुड़ी या पराठा खा सकते हैं.केले को छोड़कर कोई भी पीला फल खा सकते हैं |
बृहस्पतिवार व्रत की पौराणिक व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी।
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पति देव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पति देव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती।
बृहस्पति देव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है। अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परन्तु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को ख़ुशी नहीं हुई। उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं।
तब बृहस्पतिदेव बोले ‘यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना। सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए।
व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उसी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई। जब व्यापारी वापस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया। वहां एक वृक्ष के नीचे बैठ अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पति देव साधु के रूप में सेठ के पास आए और बोले ‘हे मनुष्य, तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?
तब व्यापारी बोला ‘हे महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।’ इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पति देव बोले ‘देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पति देव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बांट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे।
साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला ‘महाराज। मुझे तो इतना भी नहीं बचता कि मैं अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूं।’ इस पर साधु जी बोले ‘तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना, तुम्हें लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिससे तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे।
उसने लकड़ियां काटीं और शहर में बेचने के लिए चल पड़ा। उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना, गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटकर स्वयं भी खाया। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगीं, परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया।
अगले दिन वहां के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर पूरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोजन किया। राजा की आज्ञा अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोज करने गया। लेकिन व्यापारी व उसकी पुत्री तनिक विलंब से पहुंचे, अत: उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर भोजन कराया। जब वे दोनों लौटकर आए तब रानी ने देखा कि उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है।
रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ कि उसका हार उन दोनों ने ही चुराया है। राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर दिया गया। कैद में पड़कर दोनों अत्यंत दुखी हुए। वहां उन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया। बृहस्पति देव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे मिलेंगे उनसे तुम चने और मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन करना। तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे।
बृहस्पतिवार को कैद खाने के द्वार पर उन्हें दो पैसे मिले। बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी। व्यापारी ने उसे बुलाकार गुड़ और चने लाने को कहा। इस पर वह स्त्री बोली ‘मैं अपनी बहू के लिए गहने लेने जा रही हूं, मेरे पास समय नहीं है।’ इतना कहकर वह चली गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक और स्त्री निकली, व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा कि हे बहन मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी है। तुम मुझे दो पैसे का गुड़-चना ला दो।
बृहस्पति देव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली ‘भाई, मैं तुम्हें अभी गुड़-चना लाकर देती हूं। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है, मैं उसके लिए कफन लेने जा रही थी लेकिन मैं पहले तुम्हारा काम करूंगी, उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफन लाऊंगी।
वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़-चना ले आई और स्वयं भी बृहस्पति देव की कथा सुनी। कथा के समाप्त होने पर वह स्त्री कफन लेकर अपने घर गई। घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। स्त्री बोली ‘मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने दो।’ अपने पुत्र का मुख देखकर उस स्त्री ने उसके मुंह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुन: जीवित हो गया।
पहली स्त्री जिसने बृहस्पति देव का निरादर किया था, वह जब अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्र वधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मारी कि वह घोड़ी से गिरकर मर गया। यह देख स्त्री रो-रोकर बृहस्पति देव से क्षमा याचना करने लगी।
उस स्त्री की याचना से बृहस्पति देव साधु वेश में वहां पहुंचकर कहने लगे ‘देवी। तुम्हें अधिक विलाप करने की आवश्यकता नहीं है। यह बृहस्पति देव का अनादार करने के कारण हुआ है। तुम वापस जाकर मेरे भक्त से क्षमा मांगकर कथा सुनो, तब ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।
जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से माफी मांगी और कथा सुनी। कथा के उपरांत वह प्रसाद और चरणामृत लेकर अपने घर वापस गई। घर आकर उसने चरणामृत अपने मृत पुत्र के मुख में डाला। चरणामृत के प्रभाव से उसका पुत्र भी जीवित हो उठा। उसी रात बृहस्पति देव राजा के सपने में आए और बोले ‘हे राजन। तूने जिस व्यापारी और उसके पुत्री को जेल में कैद कर रखा है वह बिलकुल निर्दोष हैं। तुम्हारी रानी का हार वहीं खूंटी पर टंगा है।
दिन निकला तो राजा रानी ने हार खूंटी पर लटका हुआ देखा। राजा ने उस व्यापारी और उसकी पुत्री को रिहा कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर उसकी पुत्री का विवाह उच्च कुल में करवाकर दहेज़ में हीरे-जवाहरात दिए।
बृहस्पति देव की कथा
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था, वह बहुत निर्धन था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी स्त्री बहुत मलिनता के साथ रहती थी। वह स्नान न करती, किसी देवता का पूजन न करती, इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुखी थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे किन्तु उसका कुछ परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ। कन्या बड़ी होने पर प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप व बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके विद्यालय जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। तब ये जौ स्वर्ण के जो जाते लौटते समय उनको बीन कर घर ले आती थी।
एक दिन वह बालिका सूप में उस सोने के जौ को फटक कर साफ कर रही थी कि उसके पिता ने देख लिया और कहा – हे बेटी! सोने के जौ के लिए सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन बृहस्पतिवार था इस कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा- मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी जब लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पति देव की कृपा से सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई और उसमें जौ साफ करने लगी। परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। उस समय उस शहर का राजपुत्र वहां से होकर निकला। इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास होकर लेट गया। राजा को इस बात का पता लगा तो अपने प्रधानमंत्री के साथ उसके पास गए और बोले- हे बेटा तुम्हें किस बात का कष्ट है? किसी ने अपमान किया है अथवा और कारण हो सो कहो मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। अपने पिता की राजकुमार ने बातें सुनी तो वह बोला- मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परन्तु मैं उस लड़की से विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला- हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ। मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया। तब मंत्री उस लड़की के घर गए और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया। ब्राह्मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए तथा विधि-विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।
कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए। बेटी ने पिता की दुखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा। तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सारा हाल कहा तो लड़की बोली- हे पिताजी! आप माताजी को यहां लिवा लाओ। मैं उसे विधि बता दूंगी जिससे गरीबी दूर हो जाए। वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो अपनी मां को समझाने लगी- हे मां तुम प्रातःकाल प्रथम स्नान आदि करके विष्णु भगवान का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जावेगी। परन्तु उसकी मांग ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों की जूठन को खा लिया। इससे उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया और एक रात को कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। प्रातःकाल उसे निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसके मां बाप बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए और बृहस्पति जी के प्रभाव से इस लोक के सुख भोग कर स्वर्ग को प्राप्त हुए।
बृहस्पतिवार या गुरुवार के दिन न करें ये काम