‘रमैया वस्तावैया, रमैया वस्तावैया’, इस सुपरहिट गीत की रचना हुई थी चाय नाश्ते का आर्डर देते-देते

सुधांशु टाक

साल था 1955 . राज कपूर की मशहूर फिल्म ‘श्री 420’ रिलीज हुई . यह फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई . इस फ़िल्म का गाना ‘रमैया वस्तावैया, रमैया वस्तावैया’ अपने अनोखे बोल और लाजवाब संगीत के चलते चार्टबस्टर साबित हुआ .

इस गाने के बोल पिछले 6 दशक से संगीत प्रेमियों को लुभाते आ रहे है. ये गीत अगर आपने एक बार देख लिया, तो दूसरी बार जब भी इस गाने की धुन आप सुनेंगे तो बेफ्रिकी में नाचते बस्ती वाले और बेबस और मायूस राज कपूर और मजबूर नरगिस का तस्वीर को शायद आपकी आंखों के सामने भी आ जाती होगी

राज कपूर केवल कामयाब फिल्मकार ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने टैलेंटेड लोगों को भी खोज खोजकर रखा था. राज कपूर ने गीतकार शैलेंद्र, हजरत जयपुरी से लेकर संगीतकार शंकर जयकिशन जैसे नायक हीरे बॉलीवुड को दिए. जिन्होंने दर्शकों को बेहतरीन गीत-संगीत का लुफ्त दिया. काम के प्रति राज कपूर की इस टीम की लगन अद्भुत थी. चाहे स्टूडियो में हो या किसी और जगह, उनके दिलो-दिमाग में कभी भी काम ओझल नहीं होता था.

ये टीम एक जगह बैठकर काम नहीं करते थे. कभी नेशनल पार्क तो कभी खंडाला तो कभी लोनावाला ये घूमते रहते. कभी-कभी तो लता मंगेशकर भी इनके साथ होती थीं. ये टीम खूब मस्ती करती थी. लेकिन दिमाग में अंतरे, मुखड़े, सुर-राग और वाद्य यंत्र की गूंज लगातार गूंजती रहते थी. फिल्म ‘आवारा’ की सफलता के बाद जब राज कपूर ने ‘श्री 420’ फिल्म का ऐलान किया, तो सभी इसके लिए बेहतरीन संगीत बनाने में जुट गए.

फिर इस दौरान शंकर, जयकिशन हजरत जयपुरी और शैलेंद्र की चौकड़ी एक बार खंडाला गई थी. जब भी ये लोग खंडाला जाते तो रास्ते में एक ढाबा पड़ता था. जहां रुककर ये चाय नाश्ता करते थे. इस बार भी ढाबे में रुकने के बाद ऑर्डर लेने वाले का इंतजार कर रहे थे. वहां, रमैया नाम का एक लड़का था, जो वहीं काम करता था और वह तेलुगु भाषी था. शंकर खुद हैदराबाद में रहे थे और वह तेलुगु बोल सकते थे तो उन्होंने उस लड़की को तेलुगु में आवाज लगाई ‘रमैया वस्तावैया’. इसका मतलब होता है ‘यहां कब आओगे’ उनके बगल में बैठे शैलेंद्र को ये शब्द अच्छे लगे और उन्होंने बार-बार यही दो शब्द सुर में बोलने शुरु कर दिए. जब वह बार-बार दो शब्द बोल रहे थी हसरत जयपुरी ने कहा , ‘बस इतना ही.’ तो उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने दिल तुझको दिया.’ सब बोले वाह… ये तो गाना बन सकता है.

अब इसमें संगीतकार शंकर सिंह रघुवंशी भी जुट गए. जयकिशन ने वहीं पर मेज थपथपाकर संगीत देने की शुरुआत भी कर डाली. इस तरह से इस गाने की रूप रेखा तैयार हो गई. खैर, चाय पीकर जब ये लोग वापस मुंबई आए, तो शैलेंद्र अपने शब्दों को पिरोते रहे और गाना और भी बेहतर होता चला गया. खंडाला से ये लोग सीधे आरके स्टूडियो पहुंचे और राज कपूर के सामने जाकर जितना भी गाना तैयार हुआ था सुना दिया. राज कपूर खुश हुए और बोले- यहीं है जो मैं चाहता था. इसके बाद उन्होंने शूटिंग की रूपरेखा तैयार की.

राज कपूर ने तय किया कि कहां फिल्म में ये गाना होगा और फिल्म की कहानी को आगे ले जाएगा. गाने में ढोलक का थाप का ऐसा जोरदार इस्तेमाल किया गया कि जिनको नाचना नहीं आता हो वो भी अपने कदमों को रोक नहीं पाते.

26 अप्रैल को उन्हीं महान संगीतकार शंकर सिंह रघुवंशी जी की पुण्यतिथि थी। उनकी पुण्यतिथि पर यह रोचक किस्सा याद आया तो आप सभी से शेयर कर लिया । शंकर जयकिशन जोड़ी वाले शंकर जी की पुनीत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन

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