महिला सशक्तिकरण का अर्थ और मायने -डॉ. सुनीता शर्मा

डॉ. सुनीता शर्मा लेखिका व शिक्षाविद्

महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठे कदम

“गरुड़ पक्षी बलशाली है फिर भी उड़ान भरने के लिए उसे दोनों पंखों की आवश्यकता होती है। अगर एक भी पंख कमजोर है तो वह ऊंची उड़ान नहीं भर सकता
वैसे ही इस राष्ट्र रुपी गरुड़ को ऊंची उड़ान भरनी है तो उसके दोनों पंख स्त्री और पुरुष समान रूप से शक्तिशाली होने चाहिए।’ यह बात आज के संदर्भ में अक्षरशः सत्य है। महिला सशक्तिकरण की धारणा को विवेकानंद जी के इस कथन से बल मिलता है।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार द्वारा उठाए राजनैतिक, आर्थिक कदम

पिछले कुछ समय से प्रत्येक राजनैतिक दल नारी शक्ति का वंदन और अभिनंदन कररहा है। महिलाओं को प्रभावित करती विभिन्न योजनाओं की समय-समय पर घोषणा
हो रही है और महिलाओं को सशक्त करने का अभियान तेज हो रहा है । जहां मध्य प्रदेश सरकार लाडली बहन योजना के तहत महिलाओं को प्रतिमाह 1250 रुपए दे रही है तो दिल्ली सरकार ने महिलाओं को प्रतिमाह ₹2500 सम्मान निधिदेने की घोषणा की है। यह केवल एक राज्य का ही उपक्रम नहीं है अपितु पूरे देश की राजनीति में महिलाओं को लुभाने, प्रभावित करने का सिलसिला शुरू होगया है। अधिकतर राज्यों में ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं जिसके पीछे स्पष्ट रूप से यही दिखाई दे रहा है कि महिलाओं को किस प्रकार प्रभावितकिया जाए। हिमाचल सरकार प्रति माह 1500 रुपए इंदिरा गांधी प्यारी बहना सम्मान निधि दे रही है।

मोदी सरकार ने भी विभिन्न योजनाओं में महिलाओं के मान सम्मान के लिए कई प्रयास किए हैं-महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में 33% आरक्षण दिलाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम लाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आबादी को प्रमुख चार जातियों में बांटा है जिन में महिलाओं को एक जाति
की संज्ञा देते हुए प्राथमिकता दी गई है। 2014 में सत्ता में आते ही देश भर में गरीब घरों में शौचालय बनवाने के निर्णय को महिलाओं के मान-सम्मान से जोड़ते हुए इसे इज्जत घर नाम दिया गया है। उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर देकर उन्हें धुएं और उससे जनित बीमारियों से राहत भी दिलवाई है। जल संकट से जूझते क्षेत्र में महिलाओं को दूर से जल भरकर ना लाना पड़े इसलिए हर घर नल पहुंचाने के लिए योजना शुरू की है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनने वाले घरों में से 60% से अधिक घरों का मालिकाना हक महिलाओं को देकर उन्हें सशक्त बनाया है। गर्भवती महिलाओं के लिए मातृ वंदन योजना शुरू की है जिसमें बच्चे के जन्म लेने पर महिलाओं को ₹25,000 प्रति माह मदद दिए जाने की घोषणा दिल्ली विधानसभा चुनाव में की गई है।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, पीएम स्वनिधि योजना, मुद्रा योजना व लखपति दीदी जैसी योजनाओं से उन्हें सक्षम व आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास किए गए हैं।
18वीं लोकसभा के आम चुनाव में जहां 96 करोड़ मतदाताओं ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग किया वहीं उनमें से 47 करोड़ महिला मतदाताओं ने भी वोट किया। केंद्र सरकार की अनेकों योजनाओं ने नारी शक्ति को संबल और आधार दिया है उन्हीं में से एक योजना है- लखपति दीदी योजना: इस योजना के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 3 करोड़ महिलाओं को स्‍वरोजगार शुरू करने के लिए 1.5 लाख रुपये तक की ब्‍याज मुक्‍त आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है जिससे इन महिलाओं की सालाना आय एक लाख से पार हो। इसके साथ ही महिलाओं को वित्तीय और कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इन तकनीकी कामों के आधार पर महिलाओं का चयन
किया जाता है। लखपति दीदी के तहत दिए जाने वाले प्रशिक्षण में बिजनेस प्लान, मार्केटिंग स्ट्रेटेजीज और बाजार तक पहुंच बनाने में सहायता करनाशामिल है। महिलाओं को फाइनेंशियल नॉलेज से मजबूत बनाने के लिए कंप्रिहेंसिव फाइनेंशियल लिट्रेसी वर्कशॉप्स चलाए जाते हैं। इन वर्कशॉप्समें बजट, सेविंग्स, इन्वेस्टमेंट जैसी चीजों की जानकारी दी जाती हैं। साथ ही व्यापार में लाभ और हानि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जातीहै। इन योजनाओं में महिलाओं को बचत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि भी मिलती है। इस योजना में महिलाओं को किफायती बीमा कवरेज भी दिया जाता है। इससे उनकी फैमिली की सुरक्षा भीबढ़ती है। महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कई तरह के इंपॉवरमेंट प्रोग्राम्स भी चलाए जाते हैं। विभागीय आउटलेट्स और समूहों के अलग-अलग जगहों पर लगने वाले मेलों में उनके उत्‍पादों की बिक्री सुनिश्चित की जाती है। लखपति दीदी योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2023 को की थी।इस योजना का शुभारंभ 23 दिसंबर, 2023 को राजस्थानमें किया गया। भारत सरकार महिलाओँ को सशक्त बनाने के लिए सदैव तत्पर रही है। महिला सशक्तिकरण में ये योजना गेम चेंजर साबित हो सकती है। “यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।’ इस दिशा में उठाया नारी शक्ति वंदन अधिनियम शुभारंभ है भारतीय राजनीति का। 1971 से आज तक समय-समय पर यह अधिनियम उठा, बना और टला। अंत्तोगत्वा विगत वर्ष गणेश चतुर्थी के दिन भारतीय गौरव को पुनर्स्थापित करने का सुयोग से अवसर मिला। संसद के विशेष सत्र में बहुमत से पारित नारी शक्ति वंदन संवैधानिक संशोधन लोकसभा और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है। अधिनियम महिलाओं को राजनीति में सशक्त बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
इस संशोधन को पूर्ण रूप से लागू होने में थोड़ा समय अवश्य लगेगा लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने विराट उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण से लेकर उन्हें नेतृत्व देने की क्षमता के लिए जो कार्य प्रारंभ किया है उस दिशा में अमृत काल में महिलाओं को राजनीति में आरक्षण देना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के मार्ग में नारी शक्ति की भागीदारी व विशेष भूमिका रहेगी ऐसा हम सभी का विश्वास है।

सामाजिक पक्ष

भारतीय समाज में महिलाएं वैदिक काल से ही प्रतिष्ठित व सम्मानित रहीं हैं। ऋषि पत्नी, पुत्री,राजकुमारी को तो अस्त्र-शस्त्र, शास्त्र में पारंगत किया जाता ही था। साधारण परिवार में जन्मी बच्चियों को भीसमान अधिकार व शिक्षा का अधिकार था। सीता, विशंभरा, शकुंतला, गार्गी, मैत्रेयी, अनुसुइया,अपाला जैसी अनेक विदुषी महिलाएं हिंदुस्तान में हुईं हैं जो शस्त्र और शास्त्र में पारंगत थीं।मध्यकाल में जब आक्रांताओं ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया और हमारी बहू-बेटियों को बुरी नज़र से देखकर उनका अपहरण कर शील भंग करना प्रारंभ किया तब इन आक्रांताओं से बचने के लिए पर्दा प्रथा प्रारंभ हुई और जैसे ही देश आजाद हुआ हम इस प्रथा से भी मुक्त हुए।

8 मार्च के आसपास आते ही महिला सशक्तिकरण, महिला अधिकारों को लेकर समाज का एक तबका जोर-शोर से बातें करनी शुरू कर देता है नारेबाजी, प्रदर्शन, स्लोगन, पोस्टर, विज्ञापनों के माध्यम से सशक्त होती महिला के विषय में खूब लिखा जाता है। क्या यह केवल एक-दो दिन के लिए विचार है या अनवरत प्रक्रिया? महिलाओं के उत्थान, विकास व प्रगति के लिए दुनिया भर के संगठन महिलाओं का महिमा मंडन करने लगते हैं।बिंदी लगाती, साड़ी-सूट पहनती भारतीय महिला को पिछड़ा हुआ दिखाने में हमारा समाज, सोशल मीडिया, फिल्में इतनी तत्पर हैं और यह बताने में हिचकिचाती नहीं कि क्यों महिलाओं को संस्कारी, घरेलू जिम्मेदारियां का निर्वहन करना चाहिए? भारतीय समाज का सबसे सशक्त स्तंभ हमारा परिवार ही है। पढ़ी-लिखी महिला अगर घर से बाहर निकल कर काम नहीं कर रही तो उसे भी ग्रेट सोशल वेस्ट तक कहने में हम हिचकते नहीं है। वहीं इस्लामी देशों की बात करें तो तीन तलाक के दंश को झेलती, बुरका, हिजाब पहनी घरेलू महिलाओं को भी वेस्टर्न मीडिया कभी दबा,कुचला,असहाय नहीं दिखाता तथा उनके पक्ष में संवाद करने व उनके विकास के लिए कटिबद्ध होता प्रतीत नहीं होता है। विगत वर्षों में जब ईरान में महिलाओं ने बुर्के व हिजाब के विरोध में प्रदर्शन किया तो किसी भी विकसित देश,वामपंथी प्रोग्रेसिव लोगों की ओर से उन महिलाओं के पक्ष में कोई लामबंदी नहीं हुई, ना तो कोई लेख लिखे गए, ना टीवी पर चर्चा हुई और अंततः उन प्रदर्शनकारी महिलाओं को जेल में डाल दिया गया या मार दिया गया। अगर यह स्थिति भारत में पर्दा प्रथा के विरुद्ध होती तो  चौतरफा हमले व लामबंदी शुरू हो जाती। आमिर खान प्रोडक्शन में महाराज, लापता लेडिज फिल्में बनीं। हम कह सकते हैं कि देवदासी प्रथा और पर्दा प्रथा के क्या नुकसान हो सकते हैं पर एक विचारोत्तेजक विषय लेकर कार्य किया गया और हिंदू समाज ने इसका स्वागत भी किया लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि क्या मुस्लिम बहनों का दर्द, डर और पीड़ा उन्हें दिखाई नहीं देती है? क्यों अभी तक तीन तलाक, बुर्का, हिजाब और एक पत्नी विवाह को आधार बनाकर मुस्लिम बहनों के अधिकारों व हक को भी आवाज़ देने की आवश्यकता आमिर खान को महसूस नहीं हुई।

जहाँ केंद्रीय सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और हलाला जैसी कुप्रथाओं से मुक्ति दिलाई है। उत्तराखंड की सरकार ने समान नागरिक संहिता
ही लागू कर दी है जो सब से क्रांतिकारी कदम है। अन्य कई राज्य सरकारें भी इस विषय पर काम करने की मंशा दिखा चुकी हैं। विकसित देशों में स्वच्छंदता, परिवारों के विघटन व तलाक के केस लगातार बढ़ रहे हैं। वहाँ का समाज पूरी तरह दिशाहीन हो चुका हैं। मार्क्सवाद के नए रूप “वोक” ने शिक्षा संथाओं से लेकर घरों तक में व्यक्ति को केवल अधिकारवादी, व्यक्तिवादी और स्वच्छंदतावादी बना दिया है तथा सरकारों और हर तरह की सामजिक संस्थाओं से असंतुष्ट बना कर छोड़ दिया है। पूरा जोर
अधिकारों और अपनी मर्जी चलाने पर है और कर्तव्यों, मर्यादाओं और परम्पराओं का नाम लेना भी पाप बना दिया गया है । गलत को गलत कहना “जजमेंटल” होना कहा जाता है। माता-पिता भी अब बच्चों का मार्गदर्शन नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा करने से “जजमेंटल” हो जाएंगे।

फिल्म, सीरियल, ओटीटी , अखबार, शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से यह सब भारत में भी प्रवेश कर रहा है जिसके शब्दजाल को समझ कर उससे बचना आवश्यक है। विवाह की बजाय “लिव इन”, बच्चों की जिम्मेदारी से बचना, अंगप्रदर्शन को नग्नता की बजाय “बोल्ड” और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहना, विवाहपूर्व, विवाहेत्तर और अप्राकृतिक यौन संबंधों को स्वीकार्य और अधिकाधिक प्रचलित बनाना महिलाओं को सशक्त नहीं बल्कि स्वच्छंद, अकेला और मर्यादाहीन बनाता जा रहा है। यह अपसंस्कृति शिक्षा संस्थाओं, परिवार और व्यक्ति को खोखला कर रही है। विवाह और पारिवारिक संबंधों के स्थायित्व और उनसे मिलने वाली सुरक्षा की भावना को नष्ट कर रही है। स्त्री आर्थिक रूप से सशक्त और अधिकार संपन्न होने पर भी यदि सामाजिक और मानसिक रूप से अकेली हो जाए तो ऐसा सशक्तिकरण क्या काम आएगा? अपने धर्म, सभ्यता-संस्कृति, संस्कार की शिक्षा बंद हो जाने के कारण इस दिशाभ्रम को रोकना असंभव लगने लगा है।
महिला सशक्तिकरण के विषय में बात करने पर दिल्ली की अध्यापिका इंद्राणी भास्कर ने कहा कि मेरे लिए महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि मेरा पूरा परिवार मेरा सम्मान करें, पति बराबरी का हक दे। आजकल महिलाएं घर और बाहर दोनों संभालती हैं, उनकी कमियों को नजर अंदाज किया जाए और उन्हें डोरमैट की तरह से प्रयोग में ना लाया जाए, ना ही घर में और ना ही ऑफिस में। परिवार में लड़की होना बोझ ना समझा जाए। समाज इस विचार से बाहर निकले। लड़की को भी संस्कार व शिक्षा दी जाए।औरतों के साथ अगर शोषण हो तो समाज एकजुट होकर खड़ा हो ताकि महिलाओं को ही एहसास रहे कि समाज उसके साथ है।

वहीं बिहार पटना से राजीव सिन्हा ने कहा कि देश की आधी आबादी महिला है।बिना उनकी बराबरी और आजादी, सोशल रिस्पेक्ट के देश आगे नहीं बढ़ सकता। अब महिलाओं पर घर परिवार और ऑफिस सभी की जिम्मेदारी है इसलिए परिवार उसके प्रति संवेदनशील भी हो और उसके साथ भी खड़ा हो।महिलाओं के लिए भी आवश्यक है कि वे अपनी प्राथमिकता को समझते हुए अपने कैरियर का निर्णय लें।

मिशनरी स्कूल में पढ़ाने वाली बीवी कोरियन से जब बात हुई तो उन्होंने कहा कि कामकाजी महिलाओं की जिम्मेदारी अधिक है। महिलाओं का लाइफस्टाइल बेहतर हुआ है लेकिन ऐसी महिलाएं जो घर से बाहर कार्य कर रही हैं उनमें अपराधबोध भी रहता है कि उन्हें छोटे बच्चों को घर पर छोड़कर आना पड़ता है। अगर वे बच्चों के पालन पोषण के लिए नौकरी छोड़ती हैं तो बाद में इस बात का कोई भरोसा नहीं है कि उन्हें नौकरी मिलेगी। इसलिए महिलाएं अपने कैरियर को लेकर कहीं ना कहीं अधिक सचेत हुई हैं।

भारतीय संस्कृति जहां परिवार को जोड़कर रखने की बात करती है वहीं महिलाओं पर यह अधिक जिम्मेदारी आ जाती है कि वे परिवार और बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी का वहन करें और इसी कारण से शायद वर्तमान समाज में लड़कियां विवाह करने व बच्चों के जिम्मेदारी से बचना चाहती हैं। घरेलू जिम्मेदारी को वहन करती महिला आज की लड़कियों का आदर्श नहीं है।

यह सतत् विकास की प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति ने यज्ञ में आहुति देनी है। ऐसे कई सामाजिक संगठन इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं। ऐसा ही एक संगठन राष्ट्र सेविका समिति है जो विश्व का सबसे बड़ा महिला संगठन है। यहां महिलाओं के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक विकास पर बल दिया जाता है। जहां शारीरिक रूप से सबल बनाने के लिए दंड,नियुद्ध की शिक्षा दी जाती है तो बौद्धिक विकास के लिए देश के ज्वलंत विषयों पर चर्चा के माध्यम से बौद्धिक योद्धा तैयार किए जाते हैं। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग करवाते हुए उन्हें कर्तव्यों के वहन के लिए प्रेरित किया जाता है। मात्र बदन उघाड़ू वस्त्र पहनकर, शराब मदिरा,सिगरेट का प्रयोग कर कोई महिला सशक्त नहीं हो सकती। तो ऐसे में ओटीटी, फिल्में, विज्ञापन कंपनी महिलाओं को इस प्रकार चित्रित करना बंद करें। महिलाओं की गरिमापूर्ण प्रस्तुति ही महिला सशक्तिकरण की ओर उठता एक कदम होगा।

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