डीजे आल्ला टैम आण पै बंदे भी बजा दिया करे – डीजे वाला बाबू
14 अक्टूबर से सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी डीजे वाला बाबू चौपाल एप द्वारा बनाई गई गुलजार छानीवाला की अभिनीत एक बेहतरीन फिल्म दर्शकों के सामने आ चुकी है। फिल्म की कहानी एक गैंगस्टर की है, जो झूठे आरोपों में फंसा कर जेल में डाल दिया जाता है और वह जेल से बाहर आकर अपने दुश्मनों से बदला लेता है। तकनीकी रूप से मजबूत एक बेहतरीन सिनेमा इस फिल्म में देखने को मिलेगा। फिल्म को देखने के बाद आप गौरवान्वित महसूस करेंगे कि हम भी एक्शन फिल्में बना सकते हैं। दर्शकों के लिए फुल मसाला फिल्म कही जा सकती है। साथ में फिल्म की खूबसूरती यह भी है कि पूरे परिवार के साथ सहजता से बैठकर आप देख सकते हो। एक्टिंग अच्छी है डायलॉग डिलिवरी में हरियाणवी के साथ पंजाबी का अनुभव भी आता है। कॉलेज की एंट्री के समय कॉमेडी की अच्छा डिजाईन किया गया है।
फाइट सीन के लिए कैमरा एंगल और मूवमेंट बेहतरीन प्रयोग किए गए। साउंड और एडिटिंग में इफैक्ट का उत्तम प्रयोग किया गया है। इंटरवल इमोशन बहुत गजब हैं और परफेक्ट कट है। स्लो मोशन, फास्ट मोशन का सही जगह पर अच्छा प्रयोग किया है जो एक अच्छे निर्देशक के गुण को प्रदर्शित भी करता है। निर्देशक मनदीप बेनीवाल का परिश्रम आपको फिल्म के हर फ्रेम में बिना दिमाग लगाए भी नजर आएगा।
स्क्रिप्ट पर थोड़ी सी और मेहनत की जरूरत महसूस होती है। कुछ चीजें अत्यधिक विस्तारित नजर आती हैं जिससे फिल्म की अवधि को महज बढ़ाने का प्रयास कहा जा सकता है। जिससे प्रोडक्शन कॉस्ट भी बढी और बोरियत भी महसूस होती है। अगर इसको छोटा रखा गया होता तो कहानी ज्यादा कसी हुई लगती। कोर्ट की मर्यादा और उसके कुछ नियमो के बारे में अधूरी सी जानकारी लगी। खास कर कोर्ट में सुनवाई और बहस हल्की है। जिस पर मुकदमा चल रहा होता है, वो कोर्ट में लेफ्ट साइड होता है परंतु यहां राइट साइड भी दिखा रखा है।
सभी लोकेशन कुछ ज्यादा पुरानी दिखाई गई है। सिनेमा की दृष्टि से देखें तो लोकेशन बहुत प्यारी नजर आती हैं, मगर फिल्म की कहानी थाने में लगे बोर्ड के अनुसार 2021 की है और नए 2000 के नोट हैं। इस टाइम पीरियड में हरियाणा की किसी जेल, थाने या कोर्ट की ऐसी कंडीशन आपको कहीं पर भी देखने को नहीं मिलेगी। इसलिए लोकेशन कहानी के अनुसार मेल नहीं खाती। कहानी किस टाइम की है इसमें भी थोड़ा कन्फ्यूजन रहता है। लाइटिंग का प्रयोग करने में भी गड़बड़ नजर आती है खास कर क्लाइमैक्स टाइम में जब राणा को मारा जाता है। साउंड मिक्सिंग में भी गड़बड़ रही लास्ट कोर्ट सीन में सिंक साउंड में भी कुछ ऐसा है। मेकअप कई जगह कच्चा काम चोट के निशान या खून के रंग जैसी बुनियादी चीज भी गड़बड़ दिखती है। कई जगह आर्ट टीम और कंटीन्यूटी की समस्या प्रमुखता से देखी जा सकती है खासकर जब भी घड़ी किसी सीन में हो। एडिटिंग में सुधार की जरूरत झलकती है। सीन या सीक्वेंस के बदलाव वाले जंप को बीजीएम के सहारे कंट्रोल किया जाता है लेकिन 5–6 बार बीजीएम खुद कहानी को झटके दे रहा है। बीजीएम को और बेहतर किया जा सकता था। डायलॉग्स को जिन पंजाब या बाहर के कलाकारों ने हरियाणवी में बोलने का प्रयास किया है उसमें हरियाणवी बोली का टच महसूस ना होकर बाहर का होता है। फिल्म में हरियाणवी एक्टर होते तो डायलॉग और एक्टिंग का और गहरे से मजा ले पाते।
यह सिनेमा को और अधिक अच्छा बनाने के लिए तकनीकी बाते हैं। वैसे दर्शकों को शत प्रतिशत फिल्म में भरपूर मजा आयेगा।
प्रोडक्शन के लिहाज से काफी खर्चा किया साफ दिखता है। अलग अलग लोकेशंस भरपूर प्रयोग करके अच्छी हाइट दी गई। फाइट सीन बेहद प्रभावी है और वैसा ही म्यूजिक डिजाइन किया है। एसएफएक्स और वीएफएक्स बहुत शार्पली काटे गए है। लिहाजा फिल्म देख कर ऐसी अनुभूति जरूर होगी की बेहतरीन सिनेमा हम देख कर आए हैं। वास्तव में बहुत तेज़ी के साथ हरियाणवी सिनेमा आगे बढ़ रहा है। डीजे वाला बाबू की पूरी टीम को बहुत सारी शुभकामनाएं और दर्शकों से निवेदन की एक फुल एक्शन मूवी देखने का अवसर हाथ से ना जाने दे।
स्क्रिप्ट पर थोड़ी सी और मेहनत की जरूरत महसूस होती है। कुछ चीजें अत्यधिक विस्तारित नजर आती हैं जिससे फिल्म की अवधि को महज बढ़ाने का प्रयास कहा जा सकता है। जिससे प्रोडक्शन कॉस्ट भी बढी और बोरियत भी महसूस होती है। अगर इसको छोटा रखा गया होता तो कहानी ज्यादा कसी हुई लगती। कोर्ट की मर्यादा और उसके कुछ नियमो के बारे में अधूरी सी जानकारी लगी। खास कर कोर्ट में सुनवाई और बहस हल्की है। जिस पर मुकदमा चल रहा होता है, वो कोर्ट में लेफ्ट साइड होता है परंतु यहां राइट साइड भी दिखा रखा है।
सभी लोकेशन कुछ ज्यादा पुरानी दिखाई गई है। सिनेमा की दृष्टि से देखें तो लोकेशन बहुत प्यारी नजर आती हैं, मगर फिल्म की कहानी थाने में लगे बोर्ड के अनुसार 2021 की है और नए 2000 के नोट हैं। इस टाइम पीरियड में हरियाणा की किसी जेल, थाने या कोर्ट की ऐसी कंडीशन आपको कहीं पर भी देखने को नहीं मिलेगी। इसलिए लोकेशन कहानी के अनुसार मेल नहीं खाती। कहानी किस टाइम की है इसमें भी थोड़ा कन्फ्यूजन रहता है। लाइटिंग का प्रयोग करने में भी गड़बड़ नजर आती है खास कर क्लाइमैक्स टाइम में जब राणा को मारा जाता है। साउंड मिक्सिंग में भी गड़बड़ रही लास्ट कोर्ट सीन में सिंक साउंड में भी कुछ ऐसा है। मेकअप कई जगह कच्चा काम चोट के निशान या खून के रंग जैसी बुनियादी चीज भी गड़बड़ दिखती है। कई जगह आर्ट टीम और कंटीन्यूटी की समस्या प्रमुखता से देखी जा सकती है खासकर जब भी घड़ी किसी सीन में हो। एडिटिंग में सुधार की जरूरत झलकती है। सीन या सीक्वेंस के बदलाव वाले जंप को बीजीएम के सहारे कंट्रोल किया जाता है लेकिन 5–6 बार बीजीएम खुद कहानी को झटके दे रहा है। बीजीएम को और बेहतर किया जा सकता था। डायलॉग्स को जिन पंजाब या बाहर के कलाकारों ने हरियाणवी में बोलने का प्रयास किया है उसमें हरियाणवी बोली का टच महसूस ना होकर बाहर का होता है। फिल्म में हरियाणवी एक्टर होते तो डायलॉग और एक्टिंग का और गहरे से मजा ले पाते।
यह सिनेमा को और अधिक अच्छा बनाने के लिए तकनीकी बाते हैं। वैसे दर्शकों को शत प्रतिशत फिल्म में भरपूर मजा आयेगा।
प्रोडक्शन के लिहाज से काफी खर्चा किया साफ दिखता है। अलग अलग लोकेशंस भरपूर प्रयोग करके अच्छी हाइट दी गई। फाइट सीन बेहद प्रभावी है और वैसा ही म्यूजिक डिजाइन किया है। एसएफएक्स और वीएफएक्स बहुत शार्पली काटे गए है। लिहाजा फिल्म देख कर ऐसी अनुभूति जरूर होगी की बेहतरीन सिनेमा हम देख कर आए हैं। वास्तव में बहुत तेज़ी के साथ हरियाणवी सिनेमा आगे बढ़ रहा है। डीजे वाला बाबू की पूरी टीम को बहुत सारी शुभकामनाएं और दर्शकों से निवेदन की एक फुल एक्शन मूवी देखने का अवसर हाथ से ना जाने दे।