सनातन गर्व महाकुंभ पर्व-डॉ. सुनीता शर्मा


कभी दबा कुचला इलाहाबाद था मैं
आज महाकुंभ का आगाज़ हूं
आओ देखो मेरा वैभव
मैं वही प्रयागराज हूं।
महाकुंभ की यात्रा आपको पुरातन व चिरंतन सनातन संस्कृति से परिचय करवाती है। महाकुंभ 2025 से पहले भी कुंभ देश के विभिन्न नगरों नासिक, उज्जैन, हरिद्वार का प्रयागराज में हुए हैं। इससे पूर्व समाचार पत्रों, सोशल मीडिया पर कुंभ के विषय में सुनते व जानते तो थे। कई फिल्मों का आधार कुंभ में बिछड़ने के दृश्य रहे इसलिए मन में हमेशा भय और आशंका का भाव था कि इतनी भीड़ में नहीं जाना है लेकिन इस बार 2025 महाकुंभ में सारे डर,भय, आशंका से बाहर निकलने और जीतने का भाव पैदा किया और मैंने भी अपनी उन मित्रों को बार-बार याद दिलाया जिनकी कुंभ में जाने की प्रबल इच्छा थी और कमाल यह हुआ कि अंततोगत्वा महाकुंभ में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परिवार से मैं अकेली ही महाकुंभ के लिए निकली थी लेकिन परिवारजन आश्वस्त थे कि मेरी परम मित्र अनीता का परिवार प्रयागराज में है और इसी आशा की डोर में बंधी मैं अपने मित्रों व उनके परिवार के साथ 5 फरवरी को राजधानी ट्रेन से महाकुंभ की यात्रा पर चल पड़ी। 5 फरवरी,2025 की तारीख दिल्ली निवासियों के लिए विशेष थी। लोकतंत्र के महापर्व दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए रण क्षेत्र तैयार था। हमने भी मुस्तादी से दोपहर 2:00 बजे तक एक जिम्मेदार नागरिक के नाते लोकमत परिष्कार व प्रत्येक वोटर को बूथ तक ले जाने के कर्तव्य को पूर्ण किया और अपनी परम मित्रों के साथ नई दिल्ली स्टेशन पहुंचे और इस तरह प्रयागराज महाकुंभ जाने का संकल्प पूरा होता दिखाई दिया। अगर पुत्र अर्चित प्रयागराज में ना होता तो महाकुंभ की यात्रा संभव न हो पाती। महाकुंभ की यात्रा आत्मा का दिव्य दर्शन है। सामाजिक समरसता वसुदेव कुटुंबकम का भाव सनातन संस्कृति में युगों युगों से देखने को मिलता है। महाकुंभ समरसता के धार्मिक अनुष्ठान का पर्व केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं संपूर्ण भारत व विश्व को दिव्यता प्रदान कर रहा है। क्या कभी किसी ने कल्पना की होगी कि 2025 विश्व के किसी एक देश में एक ऐसा आयोजन होगा जहां लोग भाषा, लिंग, जाति, रंगभेद, अमीर- गरीब, ऊंच-नीच से ऊपर उठकर त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे। यह कल्पना से परे का सच है। सनातन की विजय का पर्व है जहां सामाजिक समरसता के दिव्य दर्शन हो रहे हैं।

प्रयागराज कुंभ में भारत के प्रत्येक प्रांत, शहर, जिले, कस्बे, गांव-देहात से तो लोग आ ही रहे हैं विश्व के अनेक देशों में रह रहे हिंदुओं के अलावा विदेशी श्रद्धालु भी पावन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में आस्था की डुबकी लगाकर मानव जीवन को धन्य बना रहे हैं। भक्ति और आस्था की इस वेग के समक्ष कोई विकृति, कोई भेद टिक नहीं पा रहा है यही सनातन की सच्ची विजय है।
तीर्थराज प्रयाग जो प्रयागराज के नाम से भी विख्यात रहा है। भारतीय सनातन संस्कृति में अत्यंत पूजनीय स्थल है जहां मोक्षदायिनी गंगा, जमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर स्थित है इसलिए इसे तीर्थराज या तीर्थों का राज्य भी कहा गया है। आदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार आध्यात्मिक पीठ की स्थापना की और सन्यास परंपरा को दस सन्यासी नाम से स्थापित किया। उनके द्वारा स्थापित अखाड़े आज भी सनातन परंपराओं का श्रद्धा व भक्ति भाव से निर्वहन कर रहे हैं।
व्यष्टि और समष्टि का समागम ही कुंभ है जहां बड़ी संख्या में ऋषि, मुनि, महर्षि, साधारणजन उपस्थित होकर सामाजिक जीवन व राष्ट्र में धर्म की स्थापना के निमित्त कार्य करते हैं।
कुंभ की महत्ता अपरंपार, अद्वितीय व अनुपम है। कुंभ के काल स्थान को प्रकृति निर्धारित करती है। जब सूर्य और बृहस्पति विशेष राशि में जाते हैं तब उससे संबंधित काल में कुंभ पर्व मनाया जाता है। अलग-अलग राशियों में सूर्य का प्रवेश होने पर उनके समय और स्थान में भी परिवर्तन होगा। कुंभ से जुड़ी पौराणिक कथा हम सभी जानते हैं। समुद्र मंथन होने पर भगवान धन्वंतरि स्वर्ण अमृत कलश लेकर प्रकट हुए और इसी अमृत कलश से अमृत छलक पर 16 स्थानों पर गिरा। पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत गिरा वे थे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक। इन स्थानों पर हर 12 वर्ष पर कुंभ और 6 वर्ष में प्रयाग व हरिद्वार में अर्ध कुंभ आयोजित होता है। महाकुंभ में स्नान करना केवल शरीर को धोने का कार्य नहीं है अपितु इस अमृत जल में डुबकी लगाई जाती है जो हमारी आत्मा, मन और शरीर की शुद्धि करती है। खगोलीय स्थिति में जल में स्नान करना अमृत जल में स्नान के समान है। महाकुंभ में सिर्फ स्नान नहीं अमृत स्नान (राजयोग स्नान) होता है जो विशेष तिथि, समय के अनुसार होता है (मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि) जो सबसे विशेष धार्मिक आयोजन हैं और यही स्नान महाकुंभ का विशेष आकर्षण भी है।

अमृत स्नान के समय सबसे आकर्षण का केंद्र अखाड़े होते हैं। अमृत स्नान के समय विभिन्न अखाड़े व उनके साधु-सन्यासी संपूर्ण श्रृंगार कर हाथी, घोड़े, बैंड बाजे के साथ अपने शिविर से अमृत स्नान के लिए आते हैं। प्रयागराज व हरिद्वार में निरंजनी अखाड़ा सर्वप्रथम स्नान करता है वहीं उज्जैन में जूना अखाड़ा और नासिक में महानिर्वाणी अखाड़े के साधु संत पहले स्नान करते हैं। शैव अखाड़े, वैष्णव अखाड़े व उदासीन अखाड़े प्रमुख अखाड़े हैं। 547 ई. में स्थापित श्री पंच दशनाम आह्वान अखाड़ा,श्री पंच अटल अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी इत्यादि। मुख्यतः शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना धार्मिक व तात्विक शिक्षा के प्रचार व हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदायों में एकता लाने के उद्देश्य से की थी। ये अखाड़े धार्मिक केंद्र हैं जो धार्मिक व सामाजिक सुधारो के लिए काम करते हैं। भारतीय संस्कृति का प्रतीक कुंभ आयोजन में कोई किसी को आमंत्रित नहीं करता। लोग जाति-पाति ऊंच-नीच के भेद को भुलाकर बिना बुलाए सम्मिलित होने कष्ट सहनकर हजारों किलोमीटर की यात्रा उमंग और उल्लास से भरकर उपस्थित होते हैं। हमें भी महाकुंभ में जाने का अवसर दैवीय योग से ही प्राप्त हुआ है। किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा और प्रत्येक सनातनी की प्रबल इच्छा की महाकुंभ में कैसे जाया जाए। जैसे डूबते को तिनके का सहारा होता है उसी प्रकार प्रत्येक जन किसी सहारे, उम्मीद की डोर पकड़े महाकुंभ जाने को तत्पर।
महाकुंभ में जब लाखों-करोड़ों की भीड़ होगी तो स्वाभाविक है कष्ट भी होगा लेकिन किसी भक्त, श्रद्धालु के मन में कोई उद्वेग, अशांति का नामोनिशान नहीं। मुझे ऋषि भारद्वाज के आश्रम के बाहर एक बूढ़ी अम्मा की आंखों में थकान व परेशानी के कारण आंसू दिखाई दिए लेकिन इतनी तृप्ति की मानो अभी आशीर्वाद दे देगी और सड़क किनारे बैठी अम्मा के पैर उनकी बहू दबा रही थी जो खुद भी महाकुंभ यात्रा से थकी थी लेकिन तब भी सेवा भाव भरा हुआ। महाकुंभ ने लोगों के दिलों की दूरियों को दूर किया है। महाकुंभ स्नान गूंगे के गुड़ के समान है जिसका वर्णन करना संभव नहीं है। मन, आत्मा अंतस तक तृप्त। हरियाणा जींद से आए सावन कुमार व उनकी धर्मपत्नी आराधना, वहीं नरवाना हरियाणा से आए बलवान जैन व उनकी धर्मपत्नी अनीता तो मानो साक्षात् अन्नपूर्णा थी जो अपनी थकान, स्वास्थ्य की परवाह किए बिना आगंतुकों की सेवा सेवा सुश्रुषा में पूर्ण समर्पित। कुरुक्षेत्र से आई कमल ने बताया कि स्वास्थ्य के चलते मेरे लिए महाकुंभ आना आकाश कुसुम था लेकिन महाकुंभ की डुबकी ने पुनः जोश और उत्साह भर दिया। बिहार से सपरिवार आए राजीव सिन्हा के लिए महाकुंभ आध्यात्म के सागर में डुबकी लगाने जैसा था। दिल्ली से आए रूबी, अलका व उनके परिवार की सबसे छोटी छः माह की पुत्री कार से रात्रि भर चलकर प्रयागराज आए थे। कुंभ में खोने मिलने की कहानी तो हमने बचपन से सुनी है ऐसा ही इनके साथ भी हुआ पर अंततः परिवार से मिलन हो ही गया।

हजारों वर्षों से कुंभ की अलौकिक,आध्यात्मिक परंपरा अमृत चल रही है। गूगल पर महाकुंभ शब्द सबसे अधिक बार सर्च किया गया और जिस संख्या अनुपात में लोगों ने महाकुंभ में डुबकी लगाई है ऐसा लगता है भारत, चीन की जनसंख्या को अगर छोड़ दें तो विश्व के बड़े से बड़े देश की जनसंख्या इस आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समागम में दर्शनार्थ पहुंची है। विश्व ने सनातन की शक्ति को समझा व महसूस किया होगा कि 144 वर्षों में होने वाले इस महाकुंभ का माहात्म्य क्या है? महाकुंभ अनुपम, अद्वितीय, सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजन रहा जहां से सामाजिक समरसता और एकता का संदेश पूरे विश्व को गया है। महाकुंभ सबको जोड़ने, सबको साथ लेकर चलने तथा सभी के कल्याण की कामना का संदेश देने वाला उत्सव है। महाकुंभ में देश दुनिया के विभिन्न वर्गों ने एक साथ शांति, सद्भाव और सहयोग का संदेश विश्व को दिया है।
महाकुंभ व्यवस्था में 12 किलोमीटर में कुल 44 स्नान घाट बनाए गए वहीं रैन बसेरों में 25000 बिस्तरों की व्यवस्था की गई। डेढ़ लाख टेंट समस्त सुविधाओं से लैस थे। डेढ़ लाख शौचालय मेला क्षेत्र में बनाए गए। 67,000 एलईडी लाइट्स से मेला क्षेत्र जगमगाता रहा। 3000 सामुदायिक रसोइयों ने 50,000 लोगों को एक साथ भोजन कराया। महाकुंभ से लौटे प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे पर संतोष, उल्लास व आत्म संतुष्टि का भाव आपको दिखाई देगा जो आप में भी स्वत: ही ऊर्जा व उल्लास भर देगा। 4000 हेक्टेयर में फैला मेला क्षेत्र 25 सेक्टरों में बांटा हुआ है। 8000 महाकुंभ पीले गेरुआ रंग में सजी बसें चलाई गईं वहीं 3000 विशेष ट्रेनें 13000 से अधिक फेरे लेंगी ताकि इस जन सैलाब को आने-जाने में असुविधा ना हो। 8 नए स्टेशन भी प्रयागराज में बनाए गए। महाकुंभ का बजट 1017.37 करोड रुपए रहा वहीं लगभग 60 करोड लोगों के महाकुंभ में डुबकी लगाने की संभावना है। 30 पॉन्टून पुल बनाए गए हैं। मेला क्षेत्र में 10000 चेंजिंग रूम बनाए गए हैं घाटों पर। 200 से अधिक चार्टर्ड विमान आए प्रयागराज हवाई अड्डे पर, 23 शहरों से सीधी उड़ाने रहीं। 390 करोड़ बिजली बजट तथा 67,000 स्ट्रीट लाइट।
महाकुंभ में इस बार परंपरा और आधुनिकता का भव्य संगम है। महत्वपूर्ण कार्यों को डिजिटल के माध्यम से किया गया है। मेले में किसी के खो जाने पर उसे ढूंढने में डिजिटल एआई कैमरों की तकनीक का सहारा लिया गया है। ड्रोन के माध्यम से आसमान से व आसमान में होने वाली गतिविधियों पर भी नजर रखी गई है। इस तरह महाकुंभ को आपात स्थिति व संदिग्ध व्यक्तियों पर नजर रखकर सुरक्षित व व्यवस्थित बनाया गया है। महाकुंभ में क्राउड असेसमेंट टीम बनाई गई हैं जो रियल टाइम के आधार पर श्रद्धालुओं की गिनती कर रही है तथा ड्रोन कैमरे एक निश्चित क्षेत्र के घनत्व का आकलन कर सटीक अनुमान लगा लोगों की उपस्थिति का अनुमान लगा रहे हैं। महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान लगाना किसी मानव के लिए संभव है। आईआईटी कानपुर और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआई आईटी) इलाहाबाद जैसे संस्थानों की सेवाएं ली गई हैं जो भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा व अन्य लॉजिस्टिक चुनौतियों का समाधान कर रही हैं।संगम में प्रदूषण न हो इसके लिए भी रियल टाइम में जल गुणवत्ता निगरानी प्रणाली स्थापित की गई है ताकि तीर्थ यात्री स्वच्छ जल में स्नान कर सकें। इसके अलावा कार्बन उत्सर्जन कम हो इसलिए मेला क्षेत्र में सौर ऊर्जा स्टेशन व पर्यावरण अनुकूल डिजिटल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली भी लगाई गई है। जल की गुणवत्ता का एक उदाहरण तो मुझे घर पर ही देखने को मिला मैंने ब्लू ओशन की बोतल में तीर्थराज प्रयाग से लाया जल रखा था और मेरे पुत्र ने इस बोतल से जल पिया क्योंकि जल बिल्कुल साफ व स्वच्छ था। देश की सांस्कृतिक विरासत को दिखाने के लिए 10 एकड़ क्षेत्र में कला ग्राम बसाया गया है जो विभिन्न कलाओं के माध्यम से देश की समृद्ध, सांस्कृतिक विरासत को कला के माध्यम से दिखा रहा है। डिजिटल कुंभ में भी भारतीय सनातन संस्कृति के साक्षात् दर्शन किए जा सकते हैं। मात्र ₹50 की टिकट में आप समुद्र मंथन से लेकर अन्यान्य घटनाओं को विभिन्न चलचित्रों के माध्यम से देख सकते हैं। जब हम कुंभ में करोड़ों लोगों के जाने के विषय में सुनते हैं तो सहसा अपनी आंखों और कानों पर विश्वास नहीं होता कि ऐसी व्यवस्था के लिए योगी सरकार ने जो दूरदर्शिता दिखाई है वह अकल्पनीय किंतु सत्य है। यह महाकुंभ अपनी दिव्यता, भव्यता, नित्यता तथा धर्म संस्कृति और आस्था का महापर्व बन गया है जो विश्व को सामाजिक समरसता, एकता, सद्भावना व समानता का संदेश दे रहा है। हर एक तीर्थाटनी की अपनी एक अनोखी कहानी व अनुभव है महाकुंभ का तो इंतजार किस बात का है अभी तो मौका भी है।आप भी भक्ति, आस्था की एक डुबकी लगा ही आइए महाकुंभ में।
जय सनातन! जय महाकुंभ!