7 जून 2024 को विद्यापति फिल्म दरभंगा के साहिल सिनेप्लेक्स ( लाइट हाउस ) में रिलीज हो रही है
7 जून 2024 को विद्यापति फिल्म दरभंगा के साहिल सिनेप्लेक्स ( लाइट हाउस ) में रिलीज हो रही है | 26 मई को पटना में इसका प्रीमियर होगा |
जानकी फिल्म प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले निर्माता सुनील कुमार झा, ने फिल्म ‘बबितिया’ के बाद ‘विद्यापति’ बनायीं है | जानकी फिल्म पहला प्रोडक्शन हाउस है, जो पूर्णतया मिथिला क्षेत्र – यहाँ की संस्कृति, यहाँ के समाज और यहाँ की भाषा से जुड़ा हुआ है | हमारा यह मानना है कि सिर्फ क्षेत्रीय भाषा में बनाने से कोई फिल्म क्षेत्रीय नहीं होतीं, बल्कि वह होती हैं, जो अपने क्षेत्र,उसके इतिहास, उसके समाज, क्षेत्र के संस्कार और क्षेत्र के सरोकार से जुड़ी हो | यदि कोई फिल्म अपने लोगों के लिए, अपने लोगों द्वारा और अपने बारे में बनती हैं तो उसके अपने दर्शक भी होंगे |
लोग अपने इतिहास, धर्म और संस्कृति से प्रेम करते हैं | विद्यापति एक ऐतिहासिक महाकवि और सांस्कृतिक रूप में महान व्यक्तित्व हैं | विद्यापति को मिथिलावासियों ने कई तरह से याद रखा है | मैथिली और हिंदी के छात्र माध्यमिक विद्यालयों से लेकर कॉलेज और विश्वविद्यालयों तक विद्यापति पदावली , पुर्ष-परीक्षा और उनकी अन्य रचनाएँ पढ़ते हैं | विद्यापति पर शोध होते हीराहते हैं | उनकी जीवनियाँ लिखी गयी हैं | उनपर उपन्यास और नाटक लिखे गए हैं | जन्म से लेकर मृत्यु तक, सभी संसकारों के लिए उनके लिखे गीत हैं | उनमें से बहुत खो गए हैं तो विद्यापति के नाम पर बहुत –से अप्रमाणिक गीत भी मिलते हैं | बहुत-से गीत खो गए हैं, अर्थात लोक-कंठ में नहीं हैं; और जो रचना लोक-कंठ में नहीं होतीं, मर जाती हैं | मगर बहुत-से ऐसे गीत भी हैं, जिन्हें तेजी से बदलते संसार ने 13-14 सदी से बचा रखा है | विद्यापति गीत गाँव-शहर के कंठ में है, मंदिरों और अनुष्ठानों में है |
विद्यापति की पहचान भारत के अधिकांश राज्यों में है | तभी तो 1937ई० में न्यू थिएटर कोलकाता ने बंगला में उनपर फिल्म बनायीं थी, जो हिंदी में भी डब हुई थी | और 1964 ई० में भारत भूषण को लेकर हिंदी में फिल्म बनी थी | मगर इन दोनों फिल्मों में न तो मिथिला थी और न ही विद्यापति | बंगला फिल्म में विद्यापति को वैष्णव भक्त के रूप में दिखाया गया और उनका परिधान, उनका व्यक्तित्व विद्यापति से मेल नहीं खाता है |जबकि लोगों की निगाह में, विद्यापति की स्थापित तस्वीर त्रिपुंड लगाये रुद्राक्षधारी शैव भक्त की है या शाक्त भक्त की | कृष्ण और राधा से सम्बंधित उनकी अधिकांश रचनाएं श्रृंगारिक हैं | दूसरी 64 की फिल्म विद्यापति में भी विद्यापति उतने भर नहीं हैं, जैसा उसमें दिखाया गया है | दोनों फिल्मों में कथ्य और तथ्य को लेकर भयंकर भूलें हैं | बंगला फिल्म में तो उनका लिखा एक गीत भी नहीं है , जिसके बिना उनका कोई व्यक्तित्व नहीं है | जबकि बहुत दिनों तक बंगाल का यह दावा था कि विद्यापति मैथिली के नहीं, बल्कि बंगला के कवि हैं | लोगों को अब तक उस विद्यापति का इंतजार है, वे जैसे इस फिल्म में हैं |
इस तरह उनकी राष्ट्रीय पहचान है और उन्हें गैर मैथिल दर्शक भी देखना चाहेंगे | यदि ‘विद्यापति’ फिल्म ने कुछ बाजार बनाया तो यह प्रोडक्शन हाउस आगे भी अपने क्षेत्र के लिए बेहतर फ़िल्में बनाता रहेगा और अन्य निर्माताओं के लिए रास्ते खुलेंगे और मैथिली क्षेत्रीय फिल्मे अन्य भारतीय क्षेत्रीय फिल्मों की तरह अपना बाजार बना लेगी |
यह एक ऐसे ऐतिहासिक और मिथकीय महानायक विद्यापति की कथा है, जिसके काव्य में भोग से योग तक की शक्ति है और जिसकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान् शिव उनके नौकर हो जाते हैं और माँ गंगा की धारा मीलों चलकर उनके पास आती है और उनका महानिर्वाण होता है |
यह एक महाकाव्यात्मक ( बायोपिक ) हिस्टोरिकल म्यूजिकल फिक्शन है |
राजा शिव सिंह वीर हैं | रानी लखिमा बचपन से तलवारवाजी करती रहती है | राजा के साथ विद्यापति भी स्वतंत्रता के पक्षधर हैं | तुर्क कारिंदों को राज की अधीनता का कर नहीं देने पर उन्हें कैद होना पड़ता है | बाद में भी वे युद्ध में बहादुरी से लड़ते हैं | विद्यापति वीरता के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हैं , मगर वे युद्ध के पक्षधर नहीं हैं | वे प्रेम और शांति के पुजारी हैं |
विद्यापति इब्राहीम शाह के यहाँ जाकर युद्ध-बंदी शिव सिंह को अपनी बुद्धिमत्ता से छुड़ा लाते हैं | रानी लखिमा को गुप्त रूप से सुरक्षित नेपाल ले जाते हैं |
उनकी भक्ति से अलौकिक शक्तियां प्रभावित हैं | भगवान शिव उनका नौकर बन जाते हैं और माँ गंगा उन्हें अपने साथ ले जाती हैं | वह अपनी आँखों से शिव-पार्वती का तांडव और लास्य नृत्य देखते हैं | ऐसी अलौकिक घटनाएं किसी सुपर हीरो के साथ ही हो सकती हैं |
· फिल्म में कॉमेडी को भी पूरी जगह दी गयी है |
· करुणा (tragedy ) : शिव सिंह का बंदी बनना, राजा देव सिंह का निधन, शिव सिंह का युद्ध भूमि से पता न चलना, श्मशान में विद्यापति द्वारा शिव सिंह की तलाश, रानी का सती होने लगना , उगना का गायब होना, विद्यापति का बीमार होना और अंत में उनका महानिर्वाण – ये ऐसे दृश्य हैं, जो दर्शक को भावविह्वल करेंगे |
· मानवशास्त्रीय नाटक : यह एक भाव-प्रधान और संवाद-प्रधान फिल्म है | इसके केंद्र में विद्यापति सुपर हीरो की तरह हैं और सारे पात्र इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमते हैं |
· यह कहानी मिथिला के तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक स्थितियों का व्यापक प्रतिनिधित्व करती है |
· धार्मिक : यह एक अर्थ में धार्मिक फिल्म भी है | विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव का विद्यापति का नौकर बनना और गंगा का खुद आना, यहाँ के लोगों की आस्था से जुड़ी घटना है | इस फिल की गहराई में विद्यापति की भक्ति है, जो एक साथ शैव, शाक्त और वैष्णव संप्रदाय में समन्वय स्थापित करते हैं |
· इसमें ऐतिहासिक वृतांतों का सटीक निरूपण किया गया है | मिथिला के राजा देव सिंह, उनके पुत्र राजा शिवसिंह , रानी लखिमा और स्वयं विद्यापति का वास्तविक चित्रण किया गया है | हाँ, सुधीरा, विद्यापति की पत्नी का चरित्र फिक्शनल है तो उनकी बहन प्रियंवदा, प० केशव मिश्र और अन्य गौण पात्र काल्पनिक हैं और कथा को खास रंग देने और उसकी जरूरतों के अनुसार गढ़े गए हैं | यह फिल्म इतिहास नहीं है, बल्कि इतिहास का आभास देती है | मगर विद्यापति इतिहास के सच्चे नायक हैं जो वर्त्तमान को भी प्रभावित करते हैं |
· म्यूजिकल ड्रामा : विद्यापति गीत पिछले एक हजार वर्षों से मिथिला और बंगाल, असम के लोक कंठ में बसे हुए हैं | यहाँ के विवाह-मुंडन- जनेऊ जैसे संस्कारों में विद्यापति गीत गाये जाते हैं | पद्मश्री विदुषी शारदा सिन्हा इनके गीत गाकर पूरे देश में प्रख्यात हैं | आकाशवाणी पटना और दरभंगा केन्द्रं से प्रतिदिन विद्यापति गीतों का अपना चंक है | बालीवूड की 60 में बनी फिल्म विद्यापति में मो० रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाजों में कई गाने हैं, जो विद्यापति के मूल मैथिली भाषा में हैं और अपने ज़माने में काफी लोकप्रिय रहे हैं |
इस फिल्म में विद्यापति के सात गाने हैं , जो भगवती और शिव भक्ति से संबधित हैं | कई गानों का प्रयोग एक- आध पंक्तियों में बिना संगीत के भी हुआ है | मगर किसी गाने का प्रयोग यूँ ही नहीं, बल्कि कथा- सूत्र पकड़ने और उसे विस्तार देने के लिए हुआ है |
इस फिल्म की मुख्य भूमिका में हैं – तुषार झा, शिवानी शांडिल्य, मन्टू कुमार झा, शाक्षी मिश्रा, शुभ नारायण झा, प्रवीण कुमार झा आदि |
राजा सलहेस के तीस साल के अंतराल के बाद श्याम भास्कर ने विद्यापति का निर्देशन किया है।