अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं :-सुधांशु टाक

सुधांशु टाक

क्या आप ने कभी सोचा है कि हिन्दी फिल्म संगीत के इस लोकप्रियता का कारण क्या है? क्यूँ यह इतना लोकप्रिय माध्यम है मनोरंजन का?

मुझे ऐसा लगता है कि फिल्म संगीत आम लोगों का संगीत है, उनकी ज़ुबान है, उनके जीवन से ही जुडा हुआ है, उनके जीवन की ही कहानी का बयान करते हैं. ज़िंदगी का ऐसा कोई पहलू नहीं जिससे फिल्म संगीत वाक़िफ़ ना हो, ऐसा कोई जज़्बात या भाव नहीं जिससे फिल्म संगीत अंजान रह गया हो.

और यही वजह है कि लोग फिल्म संगीत को सर-आँखों पर बिठाते हैं, उन्हे अपने सुख दुख का साथी मानते हैं. सिर्फ़ खुशी, दर्द, प्यार मोहब्बत, और जुदाई ही फिल्म संगीत का आधार नहीं है, बल्कि समय समय पर हमारे फिल्मकारों ने ऐसे ऐसे ‘सिचुयेशन्स’ अपने फिल्मों में पैदा किये हैं जिनपर गीतकारों ने भी अपनी पूरी लगन और ताक़त से जानदार और शानदार गीत लिखे हैं.

किसी के ज़िंदगी में जब कोई उलझन आ जाती है, जब अपने ही पराए बन जाते हैं, तो बाहरवालों से भला क्या कहा जाए! तो दिल से शायद कुछ ऐसी ही पुकार निकलती है कि “अपने जीवन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊं, अपनों ने जो दर्द दिए हैं कैसे मैं बतलाऊं”।

1975 में बनी फिल्म “उलझन” को संजीव कुमार और सुलक्षणा पंडित की बेहतरीन अदाकारी के लिए याद किया जाता है. और याद किया जाता है इस फिल्म के शीर्षक गीत की वजह से भी. इस गीत के दो संस्करण हैं, एक लता मंगेशकर का गाया हुआ और दूसरा किशोर कुमार की आवाज़ में. इस फिल्म के संगीतकार थे कल्याणजी आनंदजी और गीतकार थे एम् जी हशमत.

आज संगीतकार कल्याणजी वीर जी शाह की जन्म जयंती है । उनकी पुनीत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि

(5) Apne Jeevan Ki Uljhan Ko – Sanjeev Kumar, Sulakshana Pandit | Kishore Kumar | Uljhan Song 2 – YouTube

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