सपनों और संघर्ष की कहानी है ‘लैम्डा’। लेखक कपिल शर्मा से विशेष बातचीत
बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कपिल शर्मा का नया उपन्यास ‘लैम्डा’ पाठकों में काफी लोकप्रिय हो रहा है। वर्तमान में बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में निर्वाचन अधिकारी के रुप में कार्यरत कपिल शर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। प्रशासनिक सेवा में कार्यरत रहते हुए भी उन्होंने अपने अंदर के साहित्यकार को जिन्दा रखा है। प्रशासनिक सेवा में आने के पहले वो सक्रिय पत्रकारिता में लम्बा समय गुजार चुके हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान,दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले कपिल मानते हैं कि लेखन उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है। व्यंग लेखन, लघु कहानियां और स्क्रिप्ट लेखन के बाद कपिल अब अपना उपन्यास लेकर पाठकों के बीच हैं। एक नए तरह के कथानक और अपनी रोचक प्रस्तुति के कारण उनका उपन्यास काफी चर्चित भी हो रहा है। उनके नए उपन्यास पर शिक्षाविद् अमित शर्मा ने उनसे बात की। प्रस्तुत हैं उसी बातचीत के अंश –
- ऐसा माना जाता है कि प्रशासनिक कार्यों में लगे हुए लोगों का मन शुष्क हो जाता है। आपने किस तरह से अपने अंदर की रचनात्मकता को बचाकर रखा?
जवाब- मैं कई बार इस सवाल की पड़ताल अपने भीतर करता हूं कि आखिर लेखन का बीज मेरे भीतर क्यों आया, कई बार लगता है ये अनुभवों का घाव है जो लेखन के माध्यम से सुकून पाता है और अगर ये बात सही है तो क्या फर्क पड़ता कि मैं प्रशासन से जुड़ा रहूं या कुछ और रोजगार करुं। ये अपना रास्ता बनायेगा ही। लेखन से जुड़े लोगों की अपनी अलग-अलग वजह हो सकती है, कुछ पहचान के लिए लिखना चाहता हों, कुछ रचनात्मक है इसलिए ये करना चाहते हों। मैं इसे अपने लिए करता हूं क्योंकि यह सुकून देता है।
2-उपन्यास लेखन साहित्य की सबसे कठिन विधाओं में एक माना जाता है। आपने अपनी शुरुआत सीधे उपन्यास लिखने से की है। ये प्रेरणा आपको कहां से मिली?
ऐसा नहीं है, मैंने सबसे पहले शुरुआत व्यंग्य लेखन से की थी, जिन्हें बहुत पंसद किया गया था। फिर लघु कहानियों की ओर झुकाव हुआ, पिछले कुछ वर्षो में कुछ लघु कहानियां समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई, स्क्रीप्ट लेखन को समझा और उससे आज भी जुड़ा हूं। एक लघु फिल्म भी लिखी जो बनी और सोशल मीडिया में चर्चिच भी हुई। बिहार में विधानसभा चुनाव में इलेक्शन कमीशन के लिए थीम गीत लिखा। कुछ फिल्मों के लिए गीत भी लिखे जो अभी पाइपलाइन में है। अंततः उपन्यास की ओर मुड़ा। चूंकि मैं काम की व्यस्तता की वजह से अन्य साहित्यकारों से सीधे संपर्क में नहीं रह पाता हूं , ऐसे में मेरे काम पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हो पाती है लेकिन मैं लगातार सीख रहा हूं और आगे अपने उपन्यास की एक सीरिज लाने के प्रयास में हूं जिसमें एक कहानी तीन हिस्सों में आयेगी। मेरी पुस्तक लैम्डा को लेकर भी मुझे बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, जो मेरा मनोबल बढ़ाने वाली है।
- इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी और अपनी जिम्मेदारियों के बीच आप साहित्य लेखन के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं? आपका टाइम-मैनेजमेंट का गुर क्या है?
ये बहुत कठिन है। नौकरी के बाद जो भी समय बचता है उसमें मैं अपने लिए खाली समय को खोजता हूं। कामों की रोजाना एक सूची बनाता हूं जिन्हें खत्म करने के बाद सूची से काटता जाता हूं और नये कामों को जोड़ता जाता हूं। पिछले पद्रंह सालों से ये कर रहा हूं लेकिन ये सूची खत्म हो ही नही रही। लक्ष्यों को छोटे या बड़े में बांट कर समय प्रबंधन करता हूं ताकि किसी एक काम में अनावश्यक समय बर्बाद न हो। अनावश्यक गतिविधियों से भी खुद को दूर रखता हूं। नई स्किल्स सीखता हूं ताकि काम को करने में समय की खपत कम हो सके और दूसरों पर आश्रित होने से भी बचा जा सके। समय प्रबंधन जीवन का सबसे कठिन काम है और मुझे आज तक लगता है कि मुझे इसमें निपुण होने के लिए अभी और भी बहुत कुछ सीखना है।
- ‘लैम्डा’ – आपके उपन्यास का नाम बड़ा ही अऩूठा है। कुछ इसके बारे में बताएं। यहीं नाम आपने क्यों चुना?
मैं जब स्कूल में भौतिकशास्त्र को पढ़ता था, तब लैम्डा शब्द से परिचित हुआ था और सोचता था कैसा अजीब सा नाम है। कुछ महीनों पहले मैं ऐसे ही कहीं लैम्डा के बारे में पढ़ रहा था तो मुझे जानकारी हुई कि लैम्डा का प्रयोग दो बिंदुओं के बीच तंरग का मापन करने के लिए किया जाता है। इसका जब मैंने जीवन से संदर्भ जोड़ा तो मुझे लगा कि जन्म और मृत्यु ही वह दो बिंदु है जिनके बीच हम सबकी जिंदगी की तरंग चल रही है। जो उपर उठती है, नीचे गिरती है, हमारी आंतरिक शक्ति, बाहरी तत्वों जैसे किस्मत, अनुकूल समय और हालातों से नियंत्रित भी होती है। ऐसे में हम सब लैम्डा से प्रभावित है। लैम्डा का इतना गहरा अर्थ जब मुझे समझ में आया तो ही मैंने इस अपने उपन्यास का नाम रखने का निर्णय लिया। मेरे उपन्यास के पात्रों की जीवन भी ऐसा ही है, ऐसे में शीर्षक यथोचित है। कई बार अजीब से लगने वाले शब्दों के अर्थ बहुत गहरे होते है जिसमें जीवन का पूरा दर्शन समाहित होता है, लैम्डा वैसा ही शब्द है।
- संक्षेप में अपने उपन्यास के बारे में बताएं। लोगों को इस उपन्यास को क्यों पढ़ना चाहिए?
लैम्डा उपन्यास सपनों और संघर्ष की कहानी है। उपन्यास का पात्र अपना सपना पाने में असफल होता है, जीवन में कुछ और करने को नहीं बचता है। वह वापिस गांव आकर अपनी जिंदगी को संभालने में लग जाता है और उसका सपना भीतर ही भीतर मरना शुरु कर देता है। फिर वर्षो गुजर जाने के बाद अचानक एक दिन उसे एक वजह मिलती है जिसमें उसे लगता है कि उसकी मंजिल इस रास्ते से भी मिल सकती है। अक्सर जिंदगी में हमारा सपना कहीं और खड़े होकर हमारा इंतजार कर रहा होता है और हम किसी और लक्ष्य के पीछे भाग रहे होते है।
उपन्यास में कई और भी पात्र है जो इसी झंझावात से गुजर रहे है, सबको एक कॉमन वजह मिलती है, ढेरों संघर्ष, चुनौतियां आती है, वे इनसे कैसे जीतते है और अपनी राह बनाते हुए क्रांतिकारी बदलाव ला देते है। उपन्यास इसी थीम पर है। मैं कोई बहुत बड़ा लेखक नहीं हूं इसलिए मुझे इस बात कीचिंता नहीं करनी चाहिए कि मेरे लिखे को साहित्य समाज किस तरह से शैली और लेखन के तराजू पर तौलेगा। अभी मेरा लक्ष्य और खुशी इसी बात में है कि जो कोई भी पाठक मेरे उपन्यास को पढ़ कर पूरा करे तो उसे जीवन में एक नई उर्जा की प्राप्ति हो, एक सकारात्मक ताकत मिले।
—अमित शर्मा।