शारदीय नवरात्र का ज्योतिषीय महत्व-अमित शर्मा
शारदीय नवरात्र की बहुत महिमा मानी गयी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि प्रारंभ होती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता है। इस बार यह तिथि 26 सितंबर को पड़ रही है। वहीं शारदीय नवरात्रि का समापन 05 अक्टूबर को होगा। नवरात्र के दौरान शक्ति के नौ स्वरुपों की आराधना की जाती है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी नवरात्र को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको जानकारी दे दें कि एक साल में कुल चार नवरात्रि होती हैं। जिनमें से दो गुप्त और दो सामान्य नवरात्रि हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार सभी 4 नवरात्रि शक्ति की पूजा के लिए विशेष महत्व रखती हैं। शारदीय नवरात्र आम भक्तों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। इसके साथ विजयादशमी का त्यौहार भी जुड़ा है जिसे आमजन एक उत्सव के रुप में मनाते हैं। नवरात्रि के ये पावन दिन शुभ कार्यों के लिए बेहद ही उत्तम माने जाते हैं। इन दिनों कई शुभ कार्य किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि की नौ तिथियां ऐसी होती हैं, जिसमें बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। नवरात्र के दिनों में सच्चे मन और सही तरीके से पूजा-पाठ करने से व्यक्ति के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। इन दिनों में नव ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का विधान है। अत: जन्म कुंडली के ग्रहों की शांति हेतु नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की श्रद्धापूर्वक उपासना नौ ग्रहों के क्रूर प्रभाव को शांत करती है और शुभ प्रभाव को बढ़ाकर मनुष्य को तेजोमय करती है।
यह मान्यता है कि ज्योतिष में बताए गए अन्य उपायों से जब कार्य सिद्धि नहीं होती तब नवरात्रि में की गयी उपासना सिद्धि प्रदान करती है और मनुष्य को विभिन्न समस्याओं से मुक्ति दिलाती है। आध्यात्मिक जगत में भगवती की उपासना की विभिन्न पद्धतियां प्रचलित हैं। भगवती दुर्गा की आराधना के लिए मार्कण्डेय पुराण में विषेष आख्यान मिलता है, जोकि साधकों के लिए ‘दुर्गा सप्तशती’ के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पाठ से अभिलषित कामना की सिद्धि को प्राप्त होते हैं। साथ ही निष्काम भक्त मोक्ष प्राप्त करते हैं।