
शरत सांकृत्यायन– वरिष्ठ पत्रकार
सबका ध्यान गुजरात पर ही टिका है…हिमाचल में कांग्रेस की हार पहले से तय मानी जा रही थी और परिणाम भी वैसे ही आए, इसलिए कोई उधर ध्यान ही नहीं दे रहा….लेकिन यहां बीजेपी की जीत के पीछे आलाकमान का एक सियासी खेल फिलहाल लोगों को नजर नहीं आ रहा है….पार्टी की जबर्दस्त जीत के बावजूद मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गये |
बात थोड़ी अजीब नहीं लगती…..दरअसल धूमल कभी आलाकमान की पसंद थे ही नहीं….बताया जाता है कि चुनाव घोषणा के काफी पहले अध्यक्ष अमित शाह ने अपने करीबी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को इस पद के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया था |
नड्डा भी राज्य भर में अपनी हवा बनाने में जुट गये थे…..लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद पार्टी के स्थानीय नेताओं में इसको लेकर विरोध सतह पर आने लगा….साथ ही वरिष्ठ नेता और पूर्व में सीएम रह चुके धूमल जी के प्रति सबकी सहमती दिख रही थी….आलाकमान के लिए गुजरात पर ध्यान केन्द्रित करना ज्यादा जरूरी था…..ऐसे में हिमाचल में किसी अंदरूनी कलह का उभरना आलाकमान के लिए नई सिरदर्दी मोल लेने के बराबर था….पार्टी की जीत लगभग तय ही थी इसलिए कोई रिस्क न लेते हुए धूमल को सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया गया…लेकिन अब ऐसा लगता है कि नाम की घोषणा के साथ ही साथ उनके किसी भी हालत में जीत न पाने के इंतजाम भी कर दिए गये….ऐसी सीट से सीएम उम्मीदवार को लड़ाना जहां से कांग्रेस का दिग्गज नेता खड़ा हो और जिसकी पहले से वहां खासी पकड़ हो, अपने आप सारी कहानी बयान कर देता है..जबकि सीएम उम्मीदवार को सबसे सेफ सीट से ही लड़ाया जाता है…..इतना ही नहीं इनके कुछ अन्य समर्थकों सहित समधी और प्रदेश अध्यक्ष की हार भी अंदरखाने कुछ अलग खिचड़ी पकने की ओर साफ इशारा कर रही है….तो एक तरह से देखा जाए तो प्रदेश में बीजेपी सिर्फ जीती ही नहीं है, लगे हाथ धूमल के प्रभाव से भी पूरी तरह मुक्त हो गयी है…अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ताजपोशी जेपी नड्डा की होती है या फिलहाल उनके समर्थक किसी छोटे प्लेयर की…..सचमुच राजनीति का चरित्र समझ पाना हर किसी के बूते की बात नहीं है |